▪ काल्पनिकता और वास्तविकता▪ ▪ सच्चे देव-देवता और काल्पनिक ईश्वर , भगवान , खुदा अल्लाह , परमेश्वर, प्रभू सब काल्पनिक भगवान है। ▪
▪ वेदो मे केवल देव संकल्पना थी। आर्य भारत मे आने के पूर्व हिंदू सभ्यता मे देव या देवता यह दो प्रकार की संकल्पना थी। एक प्राकृतिक नैसर्गिक देव, देवता की ओर दुसरी मानवीय देव-देवता की संकल्पना थी।▪
▪ देव या देवता इसका अर्थ देनेवाला, देते रहने वाला ,सह्योग करने वाला उसीको देव– देवता माना जाता था ▪
▪ एक मुलाखात प्रसिद्ध साहित्यिक प्राचार्य , ग. ह .राठोड
साहब से मुलाखत कर्ता महेश
देवशोध ( राठोड )▪
▪ पोलीस योद्धा वृत्त सेवा ▪
मानव समुह का इतिहास ज्यादा से ज्यादा केवल आज से पूर्व दस हजार साल पूर्व काही माना जाता है। इस्मे ईसापूर्व 7000 से 1500 ईसापूर्व तक का इतिहास सिंधु घाटी के सभ्यता का माना जाता है। इसवी सन पूर्व 1500 इसा के पश्चात इसवीसन 400 इसवीसन तक विदेशी आर्य ब्राम्हनोंका यहा पूर्णकालीन शासन और सभ्यता संस्कृती रही है । इसके पश्चात क्रांती करके तथागत गौतम बुद्ध ने भारतमें धम्म संस्कृत /सभ्यता, सम्राट राजा अशोक के काल तक थी धम्मतत्त्वि राजा बृहदत्त की हत्या कर प्रतिक्रांती के माध्यम से दुबारा विदेशी युरोपियन आर्य ब्राह्मण सत्ता प्रस्थापित की । सामान्य तौर पर कहा जाता है , की प्राचीन माने जाने वाले वेद ग्रंथ यह ब्राह्मनोंने लिखे । किंतु यह कथन सौ प्रतिशत असत्य है। क्योकी आर्य ब्राह्मण जब भारत मे आये थे, सब वे घुमंतू पशुपालक निरक्षर असभ्य स्वैराचारी मतलब मैत्रिणी अविवाहित अण्णा हार और कृषी कार्य तथा पक्षियों की उपयुक्तता से अपरिचित चे वेप अशोका प्रयोग केवल माणसा हार के लिए करते थे इसके अलावा जंगली कंदमूळ फल फुल आदी खाकर जीवन निर्वाह करते थे शेकडो सालो तक हिंदू निवासी लोगो के नगरों पर हमला करके उंके अनाज पशु महिला ये कपडे और कुछ चीजे लूट कर जंगल मे ले जाकर उनका उपयोग और उपभोग लिया करते थे। सालो के बाद लढाई मे हार गये सिंधु घाटी निवासीयोके द्वारा शरणार्थी बनाया गया। और उनके यानी सिंधू निवासी द्वारा उदरनिर्वाह करणे के शर्त पर शरण दी गई थी तात्पर्य वेध ग्रंथ सिंधू निवासी योन के द्वारा ही आर्य शरण आने के पूर्व लिखे गये थे आर्य तो भारत मे प्रवेश पाने के पूर्व और शरण लेने के बाद भी जंगली, निरक्षर, असभ्य, असंस्कृत, स्वैराचारी, मांसाहारी, निवस्त्र रहते थे। ऐसे लोग वेदो का निर्माण करना असंभव था । शरणार्थी बनकर विश्वास संपादन करनेके बाद में विश्वास घात करके सत्ता प्राप्ति के बाद वेदो मे बदल करके पुराण और ब्राह्मण ग्रंथ लिखे है । वेद मुलता: आर्य भारत मे प्रवेश करने के पूर्व सिंधू निवासीयोन के द्वारा ही लिखे गये थे। ऐसा इतिहास कार डॉक्टर निर्मोही आग्रा निवासी इंनका मानना है। इस तथ्य पर उन्होने ‘ऋग्वेदिक असूर और आर्य ‘ नाम का संशोधन पूर्ण ग्रंथ भी लिखा है । उन्होंने ये बताया है कि प्रथम ऋग्वेद सामवेद और यजुर्वेद यह त्रिग्रंथही लिखे गये थे। ऋग्वेद गेय श्लोक सामवेद मे और पद्यांश यजुर्वेद संकलित के गये है। अथर्ववेद यह लगभग 700-800 साल बाद मे लिखा गया है। और उसने कृषी और स्वास्थ्य विषयक श्लोकोका संग्रह किया गया है । ऋग्वेद ग्रंथ प्रथम 70 श्लोकोंन का था। बाद में ब्राह्मनोंने परिवर्तन और मिलावट करके ग्रंथ का रूपही बदल डाला है । बादमें ब्राह्मनोंने उन मे परिवर्तन करके और मिलावट करके मूल ग्रंथ काही रूप ही बदल डाला है । ब्राह्मणों ने केवल पुराण ग्रंथ लिखे है ।ग्रंथ लिखे है । किन्तु प्राचीनता बनी रहे , इस हेतू से उन्होंने वेद ग्रंथो का सहारा लिया है । क्यूंकि वेद ग्रंथ प्राचीन थे। प्राचीनता बनी रहे, इस हेतू से उन्होंने उनके हितोंमे अपणे हातोसें बडी मात्रा में परिवर्तन / बदल करने के बाद भी उन्होंने नामों से कोई बदल नही किया और वेदों के संदर्भके आधार पर उन्होने अन्य पुराणग्रंथ तयार किये है।
वेदों में केवल देव यह संकल्पना थी । ईश्वर , भगवान, परमेश्वर , प्रभू , सर्वज्ञ, सर्वव्यापी , सर्वशक्तिमान, संहारकर्ता, सभी का पालन करता , धर्म गुरु, धर्म ग्रंथ ,धर्मक्षेत्र ,तीर्थक्षेत्र आधी संकल्पना ये नही थी। आर्य भारत मे आने के पूर्व सिंधु सभ्यता मे देव या देवता यह दो प्रकार की संकल्पना थी । एक प्राकृतिक, नैसर्गिक देव-देवता की और दुसरी मानवीय देव-देवता की संकल्पना थी।
देव या देवता का अर्थ जो कुछ देता है। देते रहता है । सहयोग करते रहता है। वही देव या देवता माना जाता था। देवताओंमें भूमी, अग्नी, वायू, जल , तत्वका साथ ही सूर्य ,चंद्र ,तारे ,नदी, पहाड ,पेड ,पौधे ,किसान उपयुक्त पशू और पंछी जैसे गाय-बैल बिल्ली ,कुत्ता, मेंढक ,उल्लू आदि को देवता माना जाता था ।
मानवी देवताओ मे माता पिता, पूर्वज ,परिवार के सदस्य मित्र गण, सगे आधी देव-देवता माने जाते थे। क्योकि सुरज, चांद, तारो ,से उन्हे प्रकाश ,धूप ,दिशा मिलती थी भुमी पर निवास अन्न उपजाते थे । अग्नी से उजाला मिलता था। थंडी से बचाव होता था । खाद्यचिजें पकाई जाती थी । वायू और जल तो जिओंका प्राण हि था। नदी पहाड पेड पौधोसें से भी होने लाभ था किसान अनाज देते थे। गाय दूध और खेती के लिए बैल , खाद देती
थी उल्लू, बिल्ली चुहे मारते थे। कुत्ता रक्षा का काम करता था। माता पिता, भाई बहन, मित्र, सगे सभी सहयोग और प्रेम देते थे। अंतता: इन्हे देव-देवता सब कुछ देने वाले माना जाता था। इन्हे ही प्राकृतिक देव-देवता माना जाता था।इनकि पुजा नही , वंदन किया जाता था।
किंतु जब विदेशी आर्य भारत मे सत्ताधीश बने तो उन्होने कृत्रिम, नकली , मन घडण देव- देवी देवताओं का निर्माण किया देवताओं की संख्या 33 करोड मानी जाती थी। कुछ देवी देवता के नाम निम्मे है ।
लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा ,काली, संतोषी, सती आधी देवी या और ब्रह्मा , विष्णू ,शंकर राम ,कृष्ण, हनुमान, दत्त ,गणेश ऐसे करोडो देवोन के नाम आर्योके के मन घडत धर्मग्रंथ व मे बताये जाते है। विदेशी परोपजीवीआर्योके सभी के सभी ग्रंथ, शास्त्र ,पुराण और देवी-देवता मन घडत उनके हितके और अनर्योको बहुजनोंको मूलनिवासीयोंको श्रमजीवी योनको लुटने , फसानेवाले अंधश्रद्ध ,मानसिक गुलाम बनाने वाले और आर्यभट्ट का पोषण करणे वाले ,लाभ और लेने वाले, धन जमा करने वाले, कुछ खाने पीने वाले ,धन जमा करने वाले मूक, बहिरे ,अंधे ,कुछ खाने पीने वाले नही है । हीलने डुलने वाले मलविसर्जन करने वाले और खुद की रक्षा करनेवाले भी देवी देवता नही है । केवल बहुजनोंको भ्रमित कर आर्य ब्राह्मनोके घर भरने वाले और बहुजन को लूटने वाले मन घडअंत देवी देवता है।
इन देवताओं के नाम से ब्राम्हणोने कई चरित्र झुठे इतिहास ग्रंथ, धर्मशास्त्र, धर्मगुरू, धर्मक्षेत्र, तीर्थक्षेत्र , निरार्थक कर्मकांडोंद्वारा दान दक्षिणा वसूल कर के उन्होने अपनी दुकानदारी, व्यापार शुरू कर रखा है । बहुजन समाज इंन दुकानो पर जाकर खुद को लुटाते है । और ब्रह्मनोकी भटोंकि गुलामी कर कर्जबाजारी बंनकर बेमौत मरते है ।
आर्यभटोंने देवी देवताओं का डर बताकर बहुजनो को लुटते है। बगैर मेहनत कीये भोगवादी जीवन जीते है । और उची शिक्षा लेकर देश के बहुजनोंपर और अन्य देशो मे जाकर विलासी भोगवादी जीवन के साथ मालक बनकर बहुजनोंको हजारो सालो से बैलों के भांति प्रयोगमे ला रहे है। बहुजन भी बैल बनकर उनकी सेवा करने के लिए आदेश के अनुसार ,उपदेश के अनुसार, सूचना के अनुसार, अन्याय व अत्याचार सहकर आज तक उन का समर्थन कर पशु यातना भोगत रही है।
▪ खत्रे की घंटी / इशारा▪
यदि भविष्य मे बहुजनोंने आर्यभटोनके धर्मग्रंथोन्को त्याग कर देवी देवताओं को त्यागकर प्राकृतिक देवी देवतानको स्वीकार नही किया तो आनेवाली हजारो पिढिया आर्यभटोंकि गुलाम बनकरही नष्ट होने वाली है। इसमे कोई संदेह ना करना, यही मेरा कहना है। ▪
० जय भारत– जय संविधान ०
० प्राचार्य ,ग. ह. राठोड.
० 98 81 29 69 67 ०
▪पोलिससुद्धा वृत्तसेवा▪
▪ महेश देवशोध ( राठोड )▪
▪ वर्धा , जिल्हा प्रतिनिधी ▪
▪73 78 70 34 72 ▪