शीर्षक – टकला कहां का
शीर्षक – टकला कहां का
घने बाल थे सर पे मेरे, क्या लगते हो कहती थी
चेहरा आपका कितना प्यारा ,देख देख मुस्काती थी
हंसी ठिठोली होती हर दिन ,हंसी खुशी में जीवन था
देख देख के मेरा चेहरा ,उसके मन में मधुवन थाllp
हुई अचानक बिदा बहारे ,सारी जमीं पे राज खिजां का
झडे बाल जब मेरे सर से ,अब कहती है टकला कहाँ का ||
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मेरे प्रियतम मेरे सोना ,तुम तो मेरे प्यारे चंदा
मै तुम्हारी प्यारी चांदनी ,नहीं सुहाता कोई बंदा
तुम फिल्मो के हीरो जैसे ,मै हीरोईन लगती हूँ
तुमको कोई कुछ बोले तो, मै उनसे झगड़ती हूँ
वक्त बीत गया थोड़ी खटपट ,एक दिन कह दिया पगला कहाँ का
मधुर भाव से समझा रहा था ,जोर से कहती टकला कहाँ का ||
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होश उड़ गए मेरे तब जब ,परिचय मेरा बता रही
दूर खड़ा था दूर से मेरे ,परिचय में सर बता रही
चमक रहा है आईना सा, उजड़ा हुआ ज्यों जंगल है
सफा चट जो दिख रहा है ,मैदान में न कोई कंकर है
जोर जोर से परिचय में ,कंट्रोल नहीं है उसके जुबां का
जब मैंने आँखे दिखलाई ,तो कहती मै नहीं डरती टकला कहाँ का ||
कलम से
गजानन धराड़े
मो. 6261653748
ग्राम –पाटन .कुरई