महाराष्ट्र हेडलाइन

▪श्री संत सेवालाल महाराज ▪पुरोगामी विचारोंका कोहिनूर ▪एक महान समाज सुधारक ▪और महान क्रांतिकारी संत ▪एक मुलाखात लेखक ▪ प्राचार्य , ग. ह . राठोड, ▪सहाबसे, मुलाखात कर्ता ▪महेश देवशोध ( राठोड )

Summary

▪पोलीस योद्धा वृत्त सेवा ▪ प्रस्तुत रचनामें क्रांतिकारी सेवालाल के नामके पूर्व मैने कही संत शब्द का और बादमें महाराज शब्द का प्रयोग किया है। क्योंकि बंजारा जनसमूह उन्हे संत और महाराज भी मानते थे। किंतु सेवालाल वास्तव में महान […]

▪पोलीस योद्धा वृत्त सेवा ▪

प्रस्तुत रचनामें क्रांतिकारी सेवालाल के नामके पूर्व मैने कही
संत शब्द का और बादमें महाराज
शब्द का प्रयोग किया है। क्योंकि
बंजारा जनसमूह उन्हे संत और
महाराज भी मानते थे। किंतु
सेवालाल वास्तव में महान क्रांती
कारी, सुधारक और प्रबोधनकार
थे । अंतः उन्हे क्रांतीकारी एवं
प्रबोधनकारही माना जाय, संत
और महाराज न माना जाय ।
क्योंकी सेवालाल बापूने निजाम
सरकार , हिंदुत्ववादी संघटनाये
और ब्रिटीश सरकारका भी विरोध
करके गोर बंजारा जनसमूहकों
उनकी गुलामीसे मुक्त करणेका
जीवनभर प्रयास किया यह इति-
हास हमे मालूम होता है ।

▪वर्तमान कालमे बंजारा, गोर,
गोरमाटी, गराशिया आदी नामोंसे
संबोधे जानेवाले जनसमूहमें आठरहवी सदीमें एक व्यापारी एवं समाजसुधारक ,प्रबोधनकार,
पशुपालक महापुरुष होकर गया ।
उपरोक्त सभी जन समूह ऊसे संत
मानते थे और आजभी मानते है।
उनका नाम सेवालाल, सेवादास,
सेवाभाया, एसे अनेक नामोनसे उन्हे पुकारा या संबोधा जाता है।
वर्तमान समयमें समाज उन्हे संत ही नहीं ,ईश्वर , देव ,
संकतमोचक ,मानकर उनका नाम
स्मरण, भजन कीर्तन, पूजा प्रार्थना क्षेत्र निर्माण, क्षेत्र दर्शन ,
मूर्ती स्थापना कर अपना समय ,धन और शक्ती भी निरर्थक
खर्च कर रहे है।
संत सेवालाल वास्तवमें उपरोक्त किसी भी विचारके समर्थक नहीं थे। वे सचमें ,ईश्वर ,भगवान ,देव ,नामस्मरण, पूजा ,प्रार्थना , मूर्ती, मंदिर ,क्षेत्र निर्माणके विरोधमें थे।
वे सर्वशक्तिमान ईश्वर की संकल्पना को क्षेत्र निर्माण को
व्य र्थ मानते थे ।
इसी कारण वे जब तक जीवित थे , तबतक उन्हों ने
उनका छायाचित्र निकलना, उनकी मूर्ती की स्थापना , मंदिर
निर्माण करना , नामस्मरण करना
आदी बाते नहीं होने दी ।खुद
उन्हों ने किसी मूर्ती, मंदिर, क्षेत्र
का निर्माण नहीं किया । केवल
कल्याणदायी विचारोंपर चिंतन
करके इन विचारोंपर आचरण
करणा और कल्यांणमयी ,सृजनात्मक कार्यँको कर मानवकी सुख ,समृद्धी एवं शांती बाणाये रखना यही उनके प्रबोधन वचनों
का उद्देश था ।
ईश्वरी कर्मकांड यह
परोपजीवी , आलसी ,स्वार्थी, शोषक , माल क, विश्वस्त , पुजारी आदी ईश्वरी कर्मकांडो के साथ ,चमत्कार, अंधविश्वास , भ्रम
, पुण्य , मोक्ष , मुक्ती, सुख, संतती
,संपत्ती आदी बातें जोडकर पेट
भरनेका धंदा सुरू कर देता हैऔर
भोले ईश्वर भक्तओंका कर्मकांडो न के माध्यमसे शोषण करता है,
यह सच्चई उन्हे मालूम थि ।ई न
पुजारीयोंकी स्वार्थी , पेटभरनेकीं ,
भोले भक्तोंके शोषण की वृत्ती
स्वभाव गुण के कारण भोले भक्तों
का मूल्यवान समय , बल और धन
व्यर्थ में व्य य होकर बरबादी होते
रहती है, ऐसा उनका अनुभव था । अनुभव ही नहीं यह सच्चाई थी,
और आज भी है। इसी कारण संत सेवालाल महाराजको ईश्वरी अस्तित्वकिऔर उनके निरर्थक
कर्मकांडकी संकल्पना ही स्वीकार नहीं थी।
इतनाही नहीं तो भाग्य,
मुहूर्त, स्वप्न, चमत्कार, चकवा ,
स्वर्ग , नरक , पाप, पुण्य, मोक्ष ,
मुक्ती, मंत्र – तंत्र , यज्ञ – याग,
नामस्मरण, पूजा ,प्रार्थना , अभिषेक, ग्रंथ पठण, सप्ताह ,क्षेत्र दर्शन आदी बातें और कर्मकांड भी वो निरर्थक
मानते थे । इ सी कारण उंहोणें उनके वच नोंमे बंजारा बोली मे
कहां है की , “भजे पूजेम येळ
बरबाद करे पेक्षा करणी करण
वतावो ” मतलब विकासात्मक, कल्यांणप्रद,समाज एवं देश उप
योगी काम करो।
।। ईश्वर ।। यह पुरुषार्थ
हीन ,परोपजीवी, आलसी , भोंदू ,
शोषक, स्वार्थी लोगोंका व्यापार,
दुकानदारी, रोजगार हमी योजना,
निजी बँक एवं पेट भरनेका साधन
, माध्यम है । ऐ सा उनका कहना
था । परावलंबी , निर्जीव पत्थरकी मूर्तीको मंदिर मे स्थापित कर उसे चेतन देव मूर्ती
मानकर उसकी पूजा , प्रार्थना
करणा और अलंकार , पोशाख
चढा ना , नैवद्य , प्रसाद देना
इसको वे अज्ञान, अंधविश्वास,
नादानी मानते थे ।

” तम सौता तमारे जीवनेम दिवो
लगा सकोछो ”
तात्पर्य “तुम तुम्हारे
जीवनमें दीपक लगा सकते हो “।
मनुष्य खुदके बल, सामर्थ्य के
मध्यम से अपना जीवन प्रकाशमान , सुखी, समृद्ध, कीर्ती-
मान बना सकता है। ऐ सी उनकी
धारणा थी । मनुष्य प्रयास , मेहनत, श्रमही उसके भविष्य
निर्माता है, ऊसे ईश्वर की कोई
आवश्यकताही नहीं।

” हमेशा भलेती भेट रखाडो अन
सत्यकाम फत्य करो ” ।इस बोध
वचनका अर्थ यह है की , हमेशा
के लिये सज्जनोंके साथ मित्रता रखो और जो जो भी सच्चे काम है,उनको सफल बनाते रहो ।दुर्जनोंके साथ रहनेसे बुरे संस्कार
होते है, और झुठे कर्मोके परिणाम
हमेशा बुरे होते हैं ।
” जाणजो, छाणजो
अन पछज मानजो “। हिंदी अर्थ :- समझो, सोचो और उसके
बादमेंही ऊसे मानो या स्वीकार करो ऐसा उनका कहना था । अन
पढ, निरक्षर, सामान्य , अंधविश्वासी मनुष्य किसिके भी
द्वारा कही गयी बात बगैर समझें,
सोचे स्वीकार कर उसपर अंमल
करणे लगता है । इस कारण एक
तो उसका नुकसान होता है। ऊसे
फसाया या उसका शोषण किया
जाता है । कोई भी बात किसकी स्वीकार करणे या माननेके पूर्व उस बात , घटना या समस्याको
प्रथम अच्छे से समझो । बात समझनेकेबाद वह कहा तक
सच या झूठ है या फायदेमंद एवं
नुकसान देनेवाली है, इसपर सोचो , उसकी अच्छी बुरी की
परख करो । छान बींन और पुछ
ताछ करो । अंतमे वह बात अपणे हीत की हो तो ही उसे स्वीकार करो अन्यथा धुपसे निकलकर अंगारमे प्रवेश करणे जैसे हालात
हो सकते है ।

( आगेके लेख मे और भी )

▪पोलीस योद्धा वृत्त सेवा ▪
▪महेश देवशोध (राठोड )▪
▪वर्धा , जिल्हा प्रतिनिधी ▪
▪7378703472 ▪

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