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सरदार पटेल ही हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को 70 साल पहलेही पागलपन बता चुके थे.

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मुंबई संवाददाता चक्रधर मेश्राम. दि. १८ एप्रिल २०२१ सत्ता का अहंकार जब सिर चढ़ जाता है तो बिछती हुई लाशें और चीखते हुए लोग ‘उत्सव’ का विषय लगने लगते हैं. हमारे कुछ भाई गालियां देकर पूछते रहे हैं कि बीजेपी […]

मुंबई संवाददाता चक्रधर मेश्राम. दि. १८ एप्रिल २०२१
सत्ता का अहंकार जब सिर चढ़ जाता है तो बिछती हुई लाशें और चीखते हुए लोग ‘उत्सव’ का विषय लगने लगते हैं. हमारे कुछ भाई गालियां देकर पूछते रहे हैं कि बीजेपी या आरएसएस से तुम्हें क्या समस्या है? हमें निजी समस्या नहीं थी, न है. हमें इसी बात की समस्या थी जो आज आप होते देख रहे हैं.

उनके ‘हिंदू राष्ट्र’ के बारे में मुझे कभी कोई शक नहीं था कि ये बेहद क्रूर होगा. सरदार पटेल इस ‘हिंदू राष्ट्र’ की परिकल्पना को 70 साल पहले ही पागलपन बता चुके थे, क्योंकि ये विचारधारा, इसकी देश की परिकल्पना, इसके सपने बेहद मूर्खतापूर्ण, हिंसक, निर्दयी और विध्वंसक हैं. हालांकि, अभी हिंदू राष्ट्र की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन वे मजबूत समर्थन के साथ सत्ता में है और वो सब कर रहे हैं जो कर सकते हैं. यही उनके सपनों का भारत है जहां समाज का अंतिम आदमी तो क्या, समाज के आम लोगों की चीख-पुकार भी कोई सुनने वाला नहीं है.

आप आज प्रधानमंत्री का ट्विटर देखिए. शहर-दर-शहर लाशें बिछ रही हैं और वे वोट डालकर ‘डेमोक्रेसी का उत्सव’ मनाने का आह्वान कर रहे हैं. देश में हाहाकार है लेकिन देश के प्रधानमंत्री की हैसियत से वे ट्विटर पर अपील कर रहे हैं कि उपचुनावों में रिकॉर्ड मतदान करें और लोकतंत्र के उत्सव में शामिल हों. वे लगातार रैलियां कर रहे हैं और हर दिन एक-डेढ़ हजार लाशों का उत्सव मना रहे हैं. लोग सुबह सुबह उठकर ट्विटर, फेसबुक, परिचितों से, जहां से भी संभव मदद मांग रहे हैं, वे रोज सुबह उठकर अपनी रैलियों का प्रोग्राम जारी कर देते हैं और रैली पर निकल लेते हैं.

चार दिन पहले जब देश के तमाम टीकाकरण केंद्र वैक्सीन की कमी से बंद हो गए, वे टीकोत्सव मना रहे थे. अब लोकतंत्र का उत्सव मनाने का आह्वान कर रहे हैं.

दिन भर चारों तरफ से खबरों में लाशें ही लाशें हैं. उनके लिए ये लाशें उत्सव का विषय हैं. उनके लिए लोगों की चीख उत्सव की चीज है. हर मौत उनके लिए उत्सव और हर आपदा अवसर है. जनता का सामूहिक दुख उनके उत्सव का सबब है.

ट्विटर और फेसबुक मदद की गुहार से चीख रहे हैं. कई विधायक और जिला स्तर के नेता अपनी औकात भर मदद मुहैया करा रहे हैं. जिनके पास पूरे देश का संसाधन और शक्ति है, वे उत्सव मना रहे हैं.

वे उत्सव का आह्वान किससे कर रहे हैं? कौन कपूत अपने माँ-बाप के मौत का उत्सव मनाएगा? कौन माँ-बाप अपने बच्चे के मर जाने का उत्सव मनाएंगे? कौन लोग हैं जो अपने परिजनों या पड़ोसी या किसी की भी मौत पर उत्सव मनाना चाहेंगे? जनाजा जाते देख गाड़ी से उतरकर सिर झुकाने वाले लोग लाशों पर उत्सव कबसे मनाने लगे? यही समाज और संस्कृति की रक्षा है? यही नए भारत का निर्माण है?

क्या आप कभी कल्पना कर सकते हैं कि महामारी के वक़्त जब लाखों लोग दुख में हैं, कोई शासक किसी तरह के उत्सव की घोषणा कर सकता है? लेकिन उन्होंने कर दिया है. समस्या महामारी नहीं है. वह तो प्राकृतिक आपदा है. समस्या वह रवैया, व्यवहार, असंवेदनशीलता और निष्ठुरता है जो उस बारे में बात तक नहीं कर रही है. सरकार की तरफ से भरपूर प्रयास होता, फिर भी लोगों को न बचा पाते तो ये एक दूसरी बात होती.

लेकिन वे उत्सव मना रहे हैं. उनकी हर नाकामी एक उत्सव है. वे सैडिस्ट हैं. वे लोगों को लाइन में लगाकर तमाम लोगों को बेवजह मार देते हैं और उत्सव मनाने को कहते हैं. वे अपनी करनी से जनता को दुखी करते हैं और उसके दुख का विदेशी धरती पर ताली बजाकर उपहास उड़ा सकते हैं- “बेटी की शादी है लेकिन पैसे नहीं हैं, हे हे हे…”

यही उनका हिंदुत्व है, जिसका हिंदुओं से या हिंदू धर्म से कोई लेना देना तौ है नहीं, उल्टा यह हिंदुओं को भी अपना शिकार बना रहा है. यह वही सावरकर का हिंदुत्व है जो कहता है कि हिंदू और मुसलमान दो राष्ट्र हैं. जो देश के लिए हिंदुओं के बलिदान की बात करता है. लेकिन यह इतना कायर है कि कभी भगत सिंह की तरह फांसी नहीं चढ़कर बलिदान नहीं दे सकता. यह सिर्फ लोगों की जान ले सकता है और अट्ठहास कर सकता है. दांव मिले तो यह गांधी को मार देगा, दांव मिले तो लोगों को आपस में लड़ा देगा, दंगा करके जनता को मार देगा, देश बेचकर खजाना खाली करके अपने उड़ने के लिए विमान खरीद लेगा. महामारी इस विचारधारा के लिए सपनों का वह अवसर है जिसे “आपदा में अवसर” जैसे क्रूरतम नारे से नवाजा गया है.

उन्हें आपदा में भी लूट का मौका दिख रहा है. वे अगर एक राज्य की सत्ता लूट लें तो हजारों-हजार मौतों का उत्सव और भी धूमधाम से मना लेंगे. आप में से जो मुझे गालियां देते आए हैं, थोड़ी गालियां और दे लें, लेकिन ठहरकर सोचें कि ऐसे नए भारत का क्या करेंगे जहां आपकी जान की कोई कीमत नहीं होगी. आज हम में से तमाम लोग अपने परिजनों को खो रहे हैं और देश का नेतृत्व आपसे उत्सव मनाने को कहता है. अगर किसी की मौत पर शोक मनाने की जगह आप उत्सव मनाने को राजी हैं तो ऐसा पिशाचपन आपको मुबारक हो!

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