एक फैक्ट है, या सिर्फ दिमाग का भ्रम.??.. कहना मुश्किल है??
मुम्बई संवाददाता चक्रधर मेश्राम दि. 27 मई 2021:-
ताज़ा वायरस के मामले में… पहले *N95 Mask* को प्रचारित किया, लोगो मे होड़ मच गई, फिर कुछ समय बाद कहा कि ये उतना प्रभावी नही है या इसका सीमित उपयोग है,
*हाईड्रॉक्सिक्लोरोक्विन* को अचूक माना… दुनिया में भगदड़ मची उसको लेने की।
फिर उसका नाम हटा लिया, कहा कि वो प्रभावी नहीं।
*सैनिटाइजर* को हर वक़्त जेब में रखने की सलाह के बाद उसके ज़्यादा उपयोग के खतरे भी चुपके से बता दिए गए।
फिर बारी आई *प्लाज़्मा थैरेपी* की। पूरा माहौल बनाया, रिसर्च रिपोर्ट्स आईं, लोग फिर उसमें जी जान से जुट गए। लेने, अरेंज और मैनेज करने और प्लाज़्मा डोनेट करने में भी। और फिर बहुत सफाई से हाथ झाड़ लिया, ये कहते हुए… कि भाई ये इफेक्टिव नहीं है।
*स्टेरॉयड थैरेपी*, वो तो क्या कमाल थी भाई साहब! कोई और विकल्प ही नहीं था। कई अवतार मार्केट में पैदा हुए। कालाबाज़ारी हो गई, बेचारी जनता ने भाग दौड़ करते हुए, मुंहमांगे पैसे दे कर किसी तरह उनका इंतज़ाम किया। अब कहा गया कि *ब्लैक फंगस* तो स्टेरॉयड के मनमाने प्रयोग का नतीजा है।
*रेमडेसीवीर* इंजेक्शन- ये ‘जीवनरक्षक’ अलंकार के साथ मार्केट में अवतरित हुआ। इसको ले कर जो मानसिक, शारीरिक और आर्थिक फ्रंट पर युद्ध लड़े जाते उनकी महिमा मीडिया में लगभग हर दिन गायी जाती। लेकिन अरबों-खरबों बेचने के बाद अब उसको भी ‘अप्रभावी’ कह कर चुपचाप साइड में बैठा दिया। या सभी कोरोना मरीजों के लिए नही है ऐसा कहा गया,
क्लीनिकल रिसर्च ही अगर आधार है तो फिर इतने *यू टर्न* क्यों? अगर क्लीनिकल टेस्ट में दो वैक्सीन का अंतर भी ट्रायल भी शामिल होता है, लेकिन अचानक से डिमांड मैनेज करने के लिए इनकी अंतराल की अवधि है।
इन एलोपैथी के बड़े बड़े फार्मा षड्यंत्रकारियों की नियत ही कुछ और है…. जनता को भी लगता है कि फॉर्मूला शायद बहुत सीधा है: ” महंगा है अंग्रेज़ी नाम है…तो असर ज़रूर करेगा। साइड इफ़ेक्ट? वो तो हर चीज़ में होते हैं।” मरीज तो केवल अपना उचित इलाज चाहता है। गलत उपचार और आधारहीन दवाईयों के गंभीर एवं Experimental साइड इफ़ेक्ट के कारण नई बीमारियां निरंतर जन्म लेती है तो इनके बारे में कभी ज्यादा प्रचारित नही होने देते है, कहा जाता है कि ब्लैक फंगस ने दी दस्तक जैसे कि ब्लैक फंगस अभी अपनी छुटियों से लौटी है। नई नई टैग लाइन प्रचारित की जाती है। फिर वैक्सीन के गम्भीर साइड इफ़ेक्ट को भी नया नाम दिया जाएगा फिर नई दवाई वैक्सीन बूस्टर फिर कुछ और……. ये सब चलता रहेगा, कोई सोच इसलिए नही पता क्योंकि उसको नई उलझनों में उलझा दिया जाता है, नए-नए शब्दों को पकड़ा दिया जाता है।
कृपया पिछले डेढ़ साल की घटनाओं पर विचार करे, आपका सर चक्रा जाएगा। (और भी एक्सपेरिमेंटल दवाईयों के नाम तो लिए ही नही जो कई बार बदली गयी) मुझे भय नही दुष्ट की दुष्टता का. .मुझे भय है तो सज्जनों की निष्क्रियता का.