वास्तविक भारत के राष्टृपिता ज्योतिबा फूले. लेकिन सुवर्ण मानसिकता के लेखकोंने न्याय नहीं दिया??
मुंबई / संवाददाता चक्रधर मेश्राम दि ११ एप्रिल २०२१
देश के पढ़े लिखें सवर्ण मानसिकता वालें लेखकों ने कभी भी बहुजन नायकों को न्याय नहीं दिया। वे हमारे बहुजन महापुरुषों के इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश किया तब ऐसे माहौल में पढे-लिखे बहुजन लोगों का कर्तव्य बनता है कि वे अपने महापुरुषों के सच्चे इतिहास को अपने लोगों के सामने पेश करें। जो आज तक हमसे छिपाया
गया है। सच में वास्तविक महात्मा कहें जाने वाले ज्योतिबा गोविंदराव फूले जी हैं। दोस्तो, भले ही भारत के लोग मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा के रूप में पहचानते हो परंतु मेरा मन कभी भी गांधी को महात्मा के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। क्योंकि गांधी एक चतुर राजनेता से विशेष और कुछ नहीं थे। भारत के वास्तविक राष्ट्रपिता कहलाने वाले एक ही ईन्सान हो सकतें हैं और वो है 19वी सदीं में भारत में वैचारीक क्रान्ति के जरीये सामाजिक क्रान्ति का बीज बोने वाले ज्योतिबा फुले पुरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले। भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता। जब समाज में वर्गभेद और जातिवाद अपनी चरम सीमा पर था। धर्म पर खड़ी हुई वर्ण व्यवस्था के कारण शूद्र वर्ग की दशा अच्छी नहीं थी। उनका भरपूर शोषण हो रहा था। उन पर बहुत सारे प्रतिबंध थे। शूद्र स्वतंत्रता से घूम-फिर नही सकतें थे, शूद्र पढ़ नहीं सकते थे, शूद्र अपवित्र थे और उनको छूना तो दूर उनकी परछाई लेना भी पाप था। धर्म में शूद्रों को किसी भी प्रकार का अधिकार नही दिया गया था। उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता था। तब ज्योतिबा फूले ने वैचारिक क्रान्ति से सामाजिक क्रान्ति का बिगूल फूंक कर शूद्रों की शिक्षा के लिए सामाजिक संघर्ष का बीड़ा उठाया था।ज्योतिबा फुले जी ने समाज में फैली छूआ छूत, धर्म के नाम पर चल रहें पाखंड और अनेक कुरूतियों को दूर करने के लिए सतत् संघर्ष किया था। धर्म के आधार पर लागू की गई वर्ण व्यवस्था से पीड़ित और शोषित समाज के लिये *”दलित”* शब्द दिया गया था।
धर्म पर टीका – टिप्पणी करके उन्होने हिन्दू धर्म में विष की तरह फैली हूई जातिगत विषमता को उजागर किया था। धर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था से ईन्सान से ईन्सान का हो रहें शोषण को, जाति-भेद और वर्ण व्यवस्था के विरोध में अपने क्रान्तिकारी विचार रखें थे। उन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का भी गठन किया था ज्योतिबा फुले यह महसूस करते थे कि जातियों और पंथो पर बंटे इस देश का सुधार तभी संभव है जब लोगों की मानसिकता में सुधार होगा। ज्योतिबाफुले ने *”गुलामगीरी”* नामक पुस्तक लिखकर धर्म और वर्ण व्यवस्था पर बहुत ही तार्किक सवाल खड़े किये थे। “शिवाजी का पेवाडा” लिखकर शिवाजी जन्मोत्सव मनाना शुरू करके बहुजनों में वैचारिक क्रान्ति की शुरूआत की थी। आर्य बाहर से ही आनेवाले लोंग थे और यहां के बहुसंख्यक लोगों को धर्म के आधार पर गुलाम बनाकर भरपूर शोषण किया था। यह सबसे पहले कहने वाले ज्योतिबाफुले जी ही थे। उस वक्त जात-पात और ऊँच-नीच की दीवारें बहुत ही ऊँची थी। शूद्र एवं स्त्रियों की शिक्षा के रास्ते बंद थे। ज्योतिबा फुले जी ने इस मनुवादी व्यवस्था को चैलेन्ज दे कर अछूत एवं स्त्रीयो को शिक्षा देने का काम शुरू कर दिया था।महात्मा ज्योतिबा फुले दृढरूप से मानते थे कि–माताएँ जो संस्कार बच्चों पर डालती हैं, उसी में उन बच्चों के भविष्य के बीज होते है। इसलिए स्त्रियों को शिक्षित करना आवश्यक है। इस विचार पर अमल करने के लिये उन्होंने वंचित वर्ग एवं स्त्रियों की शिक्षा के लिए स्कूलों का प्रबंध करने का दृढ़ निश्चय किया ।
स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबाराव फुले जी ने 1848 में एक स्कूल खोला था जो पुरे देशभर में पहला महिला विद्यालय था। जब लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम किया फिर बाद में अपनी पत्नी सावित्रीबाई फूले को शिक्षा देकर इस काम के योग्य बनाया था।
11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा में एक माली के घर में जन्में ज्योतिबा राव फूले सच में एक ऐसे दिपक थे जिन्होने सचमूच अछूतों एवं स्त्रियों को शिक्षा देकर रौशन किया था।
भारत में अछूतों और स्त्रियों को शिक्षा देने के लिये ज्योतिबा फूले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फूले और उनको सहयोग करने वाली फातीमा बीबी द्वारा किए गये प्रयास सदा ही स्मरणीय रहेंगें। उन्होंने न सिर्फ अछूतों की शिक्षा पर काम किया बल्कि नारी-शिक्षा, विधवा -विवाह और किसानों के हित के लिए भी काफी उल्लेखनीय कार्य किया है।
ज्योतिबा फूले ने अपने जीवन काल में कई पुस्तकें भी लिखीं थी। सार्वजनिक सत्यधर्म शेतकन्याचा आसूड, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी का पेवाडा, राजा भोसला का पखड़ा, ब्राह्मणों का चातुर्य, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत, गुलामगीरी जैसी पुस्तकें लिखकर एक वैचारिक क्रान्ति का निर्माण किया था। बाबा साहब आंबेडकर भी ज्योतिवाराव फूले जी से काफी प्रभावित थे और आजीवन प्रभावित रहें। डॉ भीमराव आंबेडकर जी ने अपने महान शोध ग्रंथ “Who Were The Shudras” ज्योतिबा फूले को ही अर्पित किया था। लेकिन जातिवाद से ग्रस्त भारत के सवर्ण मानसिकता वालें लेखकों ने कभी भी ज्योतिबा फूले जी के सामाजिक सुधार के कार्यों को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया। इसी कारण सच में महात्मा की छवि चरीतार्थ करने वालें देश के वास्तविक राष्ट्रपिता ज्योतिबा राव फूले जी आज भी अनछूएं ही रह पायें हैं। सच्चे महात्मा
भारत के वास्तविक राष्ट्रपिता ज्योतिवारा फूले जी* की जयंती पर कोटि कोटि नमन!!