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अगर किसी भी दलित को हाथरस की पीड़ित लड़की से सहानुभूति है तो नवरात्र ना मनाए- डॉ कोमल राज

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हमारे गाँव-गाँव में दलित समुदाय की बेटियों के साथ सदियों से ऐसा होता आ रहा है।

क्या लिखूं , कहाॅ से शुरू करूं। 19 साल की थी वो , जीवन से भरी हुई, अभी तो नये सपने देखने शुरू किए होंगे। पर कुचल दिया गया उसके सपने, अस्तित्व, अधिकार, और आत्म सम्मान को। मै एक बात पूछना चाहती हूँ कि क्या ऐसी घटना नयी है?? नही बिल्कुल नही । हमारे गाँव-गाँव में दलित समुदाय की बेटियों के साथ सदियों से ऐसा होता आ रहा है। यही मनुवादी व्यवस्था थी। स्त्री कोई पुरुष अहम् को संतुष्ट करने की वस्तु नही है। पुरूष हर जाति मे लगभग समान ही मानसिकता के होते हैं। परन्तु सवर्ण पुरूष अलग ही किस्म के अहंकार से भरे होते हैं। अहंकार सर्वश्रेष्ट होने का , बलवान होने का, बाहूबली होने का । अहंकार सवर्ण होने का । स्त्री होने से ज्यादा कठिन दलित स्त्री होना है । दलितों को ये बात समझनी होगी कि अपना उद्धार स्वयं ही करना होगा , कोई भगवान नही है तुम्हारे लिए । न्याय मत मांगो , अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होगी । लड़कियाँ आसान टार्गेट है पूरी बिरादरी को उसकी औकात दिखाने के लिए। अगर किसी भी दलित को उस लड़की से सहानुभूति है तो नवरात्र ना मनाए। अपनी लड़की को पढ़ाओ, कराटे सिखाओ। खाना बनाना मत सिखाओ पर मुह तोड़ना जरूर सिखाओ। अपने लड़को को संस्कार सिखाओ, लड़कियो की इज्जत करना सिखाओ। बाकी मनीषा की आत्मा को शान्ति मिले न्याय मिलना तो मुश्किल लगता है ।
डॉक्टर कोमल राज 🙏

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