1 मई – अंतरराष्ट्रीय कामगार दिवस…. भारत के सभी कामगारों को बाबासाहेब व्दारा कही गई इन बातों पर सोचने की आवश्यकता है… अॅड. अतुल पाटील.
मुंबई संवाददाता चक्रधर मेश्राम दि. 30 अप्रैल 2021
“कहीं हम भूल न जायें” इस अभियान के अंतर्गत
अधिक ताकत राजनीतिक सत्ता में.. कोई इस सिद्धांत को नकार नहीं सकता कि जिसके पास सत्ता होती है आजादी उसी को मिलती है। आजादी पाने और सभी अड़चनों से निजात पाने का एक मात्र साधन सत्ता ही है। *इस मामले में कहा जा सकता है कि धार्मिक और आर्थिक शक्ति से अधिक ताकत राजनीतिक सत्ता में होती है।
मुझे उम्मीद है कि वह दिन ज्यादा दूर नहीं जब समूचा दलित (बहुजन) वर्ग संगठित होगा तथा अपने को मिली राजनीतिक सत्ता की महत्ता जानेगा। और अपनी सामाजिक मुक्ति को प्राप्त करने के लिए असरदार ढंग से उसे उपयोग में लाएगा।
मेरी राय में इस देश के श्रमिकों को दो दुश्मनों से लड़ना पड़ेगा और वे हैं – ब्राम्हणवाद और पूंजीवाद।
“सत्ता के बगैर कामगारों के हितों की रक्षा करना असंभव है।
कामगार संगठनों को राजनीति में शामिल होना चाहिए या नहीं इस बारे में अब दो राय नहीं है। कामगार संगठनों को राजनीति में शामिल होना ही चाहिए क्योंकि सत्ता के बगैर कामगारों के हितों की रक्षा करना असंभव है। इतना ही नहीं वरन् न्यूनतम मजदूरी की दर, काम का समय, अन्य नियम आदि आम बातों में सुधार केवल संगठन के बल पर नहीं लाए जा सकते। संगठन की शक्ति को कानून की शक्ति का साथ मिलना जरूरी है। अपना संगठन बनाने के साथ-साथ देश की राजनीति में प्रवेश के बगैर यह संभव नहीं है।
– बाबासाहेब डॉ आंबेडकर द्वारा 13-2-1938 को मनमाड़, महाराष्ट्र में दिया गया भाषण।
संदर्भ : बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर, सम्पूर्ण वाड्मय, खंड -39, पृष्ठ संख्या 89 & 97)