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व्यवस्था पर अंकूश रखना यह पत्रकारों का कर्तव्य है

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व्यवस्था पर अंकूश रखना यह पत्रकारों का कर्तव्य है ब्रजेश तिवारी संवाददाता- कोंढाली राष्ट्रसंततुकडोजी महाराज विश्वविद्यालय के कोंढाली के आर बी व्यास महाविद्यालय के रा से यो विभाग द्वारा आयोजीत सात दिवसीय शिबिर के पांचवे दिन24मार्च के सुबह 11-00बजे के […]

व्यवस्था पर अंकूश रखना यह पत्रकारों का कर्तव्य है

ब्रजेश तिवारी

संवाददाता- कोंढाली

राष्ट्रसंततुकडोजी महाराज विश्वविद्यालय के कोंढाली के आर बी व्यास महाविद्यालय के रा से यो विभाग द्वारा आयोजीत सात दिवसीय शिबिर के पांचवे दिन24मार्च के सुबह 11-00बजे के अवसर पर प्रा डाॅ-गोपीचंद कठाणे की अध्यक्षता में ज्येष्ठ समाजसेवक ब्रजेश तिवारी, राजेंद्र खामकर, दुर्गाप्रसाद पांडे तथा आर के असाटी के प्रमुखता में रा से यो छात्रों को लोकशाही में पत्रकार तथा पत्रकारीता इस विषय पर जानकारी के लिये आयोजीत शिबीर में उपस्थित छात्रों को मार्गदर्शन करते हुये ज्येष्ठ समाजसेवक ब्रजेश तिवारी ने बताया की

पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है, जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, जानकारी एकत्रित करके पहुंचाना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे – अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि। बदलते वक्त के साथ बाजारवाद और पत्रकारिता के अन्तर्सम्बन्धों ने पत्रकारिता की विषय-वस्तु तथा प्रस्तुति शैली में व्यापक परिवर्तन किए। जब की व्यवस्था पर अंकूश रखना यह पत्रकार तथा पत्रकारीता का मूल उद्देश है।

आर के असाटी ने बताया की वर्तमान में भारतीय पत्रकारिता सरकारी गजट या नोटिफ़िकेशन बनकर रह गई है।‌ लगभग सभी मिडिया संस्थान और‌ चैनल दिन रात सरकार का गुणगान करते हैं। इक्कीसवीं सदी में दुनिया विज्ञान और टेक्नोलॉजी पर बात कर रही है परन्तु भारतीय मीडिया धर्म, जातिवाद, मन्दिर मस्जिद की तथाकथित राजनीति से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं। इस तरह की पत्रकारिता भारतीय समाज में अन्धविश्वास, धार्मिक उन्माद, सामाजिक विघटन ही पैदा करेगी। वर्तमान समय में मिडिया की नजरों में सेक्युलर, उदारवादी या संविधानवादी होना स्वयं में सवालों के घेरे में लाकर खडा कर दिया जाता है ।

राजेंद्र खामकर द्वारा इस अवसर पर बताया गया की सामाजिक सरोकारों तथा सार्वजनिक हित से जुड़कर ही पत्रकारिता सार्थक बनती है। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुंचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाआें को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वाह ही सार्थक पत्रकारिता है।

 

कार्यक्रम के अध्यक्ष डाॅ प्रा गोपीचंद कठाणे ने अपने मार्गदर्शन में बताया की पत्रकारिता को लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ भी कहा जाता है। पत्रकारिता ने लोकतन्त्र में यह महत्त्वपूर्ण स्थान अपने आप नहीं प्राप्त किया है बल्कि सामाजिक सरोकारों के प्रति पत्रकारिता के दायित्वों के महत्त्व को देखते हुए समाज ने ही दर्जा दिया है। कोई भी लोकतन्त्र तभी सशक्त है जब पत्रकारिता सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निभाती रहे। सार्थक पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी की भूमिका अपनाया है।

कार्यक्रम का संचलन रा से यो कार्यक्रम अधीकारी प्रा डाॅ आर जी खरडे द्वारा संचलन तथा प्रास्ताविक एवं सह कार्यक्रम अधिकारी डाक्टर प्रज्ञा सा उपाध्याय द्वारा आभार माना गया ।

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